Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 26-27 | Shrimad Bhagawad Geeta with Narration

Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 26-27 | Shrimad Bhagawad Geeta with Narration

Timeline: 0:00 Introduction | Shlok - 2.26 0:26 Meaning | Shlok - 2.26 0:44 Commentary | Shlok - 2.26 4:15 Introduction | Shlok - 2.27 4:37 Meaning | Shlok - 2.27 4:55 Commentary | Shlok - 2.27 -------------------------------------------------------------------------------------- Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 26 अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्। तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥26॥ अथ-यदि, फिर भी; च-और; एनम्-आत्मा; नित्य-जातम्-निरन्तर जन्म लेने वाला; नित्यम्-सदैव; वा–अथवा; मन्यसे-तुम ऐसा सोचते हो; मृतम-निर्जीव; तथा अपि-फिर भी; त्वम्-तुम; महाबाहो बलिष्ठ भुजाओं वाला; न-नहीं; एवम्-इस प्रकार; शोचितुम्–शोक अर्हसि उचित। Translation BG 2.26: यदि तुम यह सोचते हो कि आत्मा निरन्तर जन्म लेती है और मरती है तब ऐसी स्थिति में भी, हे महाबाहु अर्जुन! तुम्हें इस प्रकार से शोक नहीं करना चाहिए। ----------------------------------------------------------------- Bhagavad Gita: Chapter 2, Verse 27 जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्बुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥27॥ जातस्य-वह जो जन्म लेता है; हि-के लिए; ध्रुवः-निश्चय ही; मृत्युः-मृत्युः ध्रुवम् निश्चित है; जन्म-जन्म; मृतस्य-मृत प्राणी का; च-भी; तस्मात्-इसलिए; अपरिहार्य-अर्थे-अपरिहार्य स्थिति मे; न-नहीं; त्वम्-तुम; शोचितुम्–शोक करना; अर्हसि उचित। Translation BG 2.27: जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म भी अवश्यंभावी है। अतः तुम्हें अपरिहार्य के लिए शोक नहीं करना चाहिए। --------------------------------------------------------------------