श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 6 | संन्यास और योग का रहस्य | Bhagavad Gita 5.6 Explained

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 6 | संन्यास और योग का रहस्य | Bhagavad Gita 5.6 Explained

🔹 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 5, श्लोक 6 | संन्यास और योग का रहस्य 🔹 इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 5, श्लोक 6 का विस्तार से अध्ययन करेंगे। भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में बताते हैं कि केवल संन्यास धारण करना ही मोक्ष का मार्ग नहीं है, बल्कि योग के माध्यम से ब्रह्म की प्राप्ति सहज और शीघ्र होती है। 📖 श्लोक: संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः। योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति॥ 6 ॥ 🕉️ हिंदी अर्थ: हे महाबाहो! योग के बिना संन्यास अत्यंत कष्टदायक है, लेकिन जो योगयुक्त मुनि है, वह शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। 👉 मुख्य संदेश: ✅ केवल बाहरी संन्यास से मोक्ष प्राप्त नहीं होता। ✅ योग से जीवन में संतुलन और आत्मज्ञान आता है। ✅ ध्यान और भक्ति के माध्यम से ब्रह्म की प्राप्ति संभव है। 🔔 ऐसे और भी गीता श्लोकों के गहरे ज्ञान के लिए चैनल को सब्सक्राइब करें और वीडियो को लाइक व शेयर करें! #BhagavadGita #GeetaShlok #SanatanDharma #Spirituality #radheradhe