क्षत्रिय पुरुष का कर्म धर्म रक्षा का है न कि उपदेश का

क्षत्रिय पुरुष का कर्म धर्म रक्षा का है न कि उपदेश का

।जय श्रीराम। ।जय श्रीराम। ।जय श्रीराम। "क्षत्रिय पुरुष का कर्म धर्म रक्षा का है न कि उपदेश का" तत्वज्ञान की जिज्ञासा: राम जियावन सिंह बाबू राम जियावन सिंहजी का अनुभव एवं जिज्ञासा श्री गुरुजी आपके कमलवत चरणों में कोटि-कोटि बार प्रणाम स्वीकार हो। आपकी कृपा से यह दास इस शरीर से अलग अपने स्वरूप का अनुभव  भगवान श्री रामजी के अंश रूप में करने लगा। श्री रामचरितमानस का हजारों बार पाठ इस शरीर के माध्यम से हुआ, जानकारी थी कि मैं भी ईश्वर का ही अंश हूंँ, लेकिन धारणा में नहीं था। विगत 8 वर्षों से श्री रामजी के चरित्र को साक्षात आपके अन्दर देख रहा हूँ- मोह-माया एवं ममता  से आपकी बुद्धि पूरी तरह से मुक्त हो चुकी है। यह  भाव इस दास को अनुभव में आ गया कि तीन लोक 14 भुवनों में आपको किसी पद या भोग में इच्छा ही नहीं रही। आपका इच्छा रहित, कामना रहित, अन-आश्रित एवं आसक्ति रहितम् जैसे अनेको चरित्र, जो श्री रामजी के ही अंग हैं, वे सभी  आपके भाव, आचरण एवं उपदेश में साक्षात प्रगट हैं।  श्री गुरुजी आठ साल से मैं यही  अनुभव कर रहा हूँ। जो अहंकार  के छ: घटक अनुभव में आया, उसका तो एक कण भी आपके भाव में नहीं दिखा। श्री गुरुजी ऐसी प्रेरणा मिली कि इस पाखंडियों का अंत करना, यह अब मेरा धर्म हो गया है। इसलिए कुछ जिज्ञासा प्रकट करना चाहता हूँ। आप तो क्षमा की मूर्ति ही है, इसलिए क्षमा अवश्य कर देंगे। श्री गुरुजी आपके मार्गदर्शन से इस दास को बोध हो गया, श्री कृष्ण भगवान के इस वाणी पर पूरा विश्वास हो गया कि सन्यासी के लिए सोना एवं नारी का दर्शन भी पाप है, फिर लगभग तीन हजार वर्षों से विष्णु भगवान के अवतार के रूप में प्रसिद्ध गौतम बुद्धा नवयुवती यानी जवान लड़की को सामने बैठाकर के क्या उपदेश कर सकता है। यह कर्म भगवान के अनन्य सेवक के द्वारा तो संभव नहीं है, फिर भी सबका परम कल्याण हो इसके लिए ऐसी जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि- इस रहस्य को भली-भाँति मैं भी जान लूँ; जिससे मुझे अपने धर्म पर चलने में किसी प्रकार का विशाद न हो। जिज्ञासा का समाधान- डॉ रवि शंकर पाण्डेय बोधमय ज्ञान:- ।जय श्रीराम। ।जय श्रीराम। ।जय श्रीराम। बाबू राम जियावन सिंह भईया- सबसे पहले तो यह अनुभव कर लें कि- यह जो दृश्य संसार जगत है, जो अनुभव में आ रहा है- इसमें लौकिक एवं अलौकिक रूप से जहाँतक आप सजीव रुप का अनुभव आप कर सकते हैं- ब्रह्माजी, विष्णु भगवान एवं श्री महेशजी तक- सभी के सभी, आपभी, जो भी मित्र इस भाव का दर्शन और श्रवण करेगा वह भी अनादि तत्व परमात्मा श्री रामजी से ही उत्पन्न हैं। मित्र! इस दिव्य ज्ञान का सरल एवं स्पष्ट भाव यह है कि किसी भी जीव का किसी भी रूपमें (मच्छर से लेकर ब्रह्माजी तक) अलग से कोई अस्तित्व नहीं है; मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन। अस बिचारि तजि संसय रामहि भजहिं प्रबीन। राम जियावन सिंह भईया! भाव यह है की परम कृपालु परमात्मा श्री रामजी प्रभु! मच्छर को ब्रह्माजी और ब्रह्माजी को मच्छर से भी तुच्छ बना सकते हैं। ऐसा विचार कर चतुर पुरुष सभी संशयों का परित्यागकर श्रीरामजी का निःष्काम भजन करते हैं॥ जय श्री राम - जय श्री कृष्णा प्रिय मित्रों , आप सभी की जय हो सन्दर्भः- धरतीके धर्म रक्षक क्षत्रिय वीर पुरुषोंके स्वाभाविक कर्म--- डॉ रवि शंकर पाण्डेय धर्म रक्षक क्षत्रिय वीर पुरुषोंके स्वाभाविक कर्म:- शूरवीरता, तेज, धैर्य, चतुरता, युद्ध में न भागना, दान देना, प्रजा की रक्षा करना, स्वामी भाव, यज्ञ करना, वेदों का अध्ययन करना और विषयों में आसक्त न होना। ये सब-के-सब ही क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म है 01. शूरवीरता- बड़े से बड़े बलवान शत्रु का न्याय युक्त सामना करने में भय न करना तथा न्याय युक्त युद्ध करने के लिए सदा ही उत्साहित रहना और युद्ध के समय साहसपूर्वक गम्भीरता से लड़ते रहना शूरवीरता है। पितामह भीष्म का जीवन इसका ज्वलंत उदाहरण है । 02. तेज- जिस शक्ति के प्रभाव से मनुष्य दूसरों का दबाव मानकर किसी भी कर्तव्य पालन से कभी विमुख नहीं होता और दूसरे लोग न्याय के और उसके प्रतिकूल व्यवहार करने में डरते रहते हैं उस शक्ति का नाम तेज है इसी को प्रताप और प्रभाव भी कहते हैं । 03. धैर्य- बड़े-से-बड़ा संकट उपस्थित हो जाने पर, युद्ध स्थल में शरीर पर भारी से भारी चोट लग जाने पर, अपने पुत्र-पौत्र आदि के मर जाने पर, सर्वस्व का नाश हो जाने पर या इसी तरह अन्य किसी प्रकार की भारी से भारी विपत्ति आ पड़ने पर भी कर्तव्य पालन से कभी विचलित न होकर न्याय अनुकूल कर्तव्य पालन में संलग्न रहना----इसी का नाम 'धैर्य' है । 04. चतुरता- परस्पर झगड़ा करने वालों का न्याय करने में , अपने कर्तव्य का निर्णय और पालन करने में , युद्ध करने में तथा मित्र वैरी और मध्यस्थों के साथ यथायोग्य व्यवहार करने आदि में जो कुशलता है, उसी का नाम चतुरता है । 05. युद्ध में न भागना । 06. दान देना। 07. प्रजा की रक्षा करना। 08. स्वामी भाव। 09. यज्ञ करना। 10. विषयों में आसक्त न होना। परम लाभ हेतु वीडियो का दर्शन परम श्रद्धा के साथ अवश्य कर लीजिएगा।