
श्रीमद भगवत गीता अध्याय 1- श्लोक 36 | Bhagavad Gita | Chapter 1 - Verse 36 #mahabharat #bhagvadgita
श्रीमद भगवत गीता अध्याय 1- श्लोक 36 | Bhagavad Gita | Chapter 1 - Verse 36 #mahabharat #bhagvadgita #bhagwatgeeta #bhagwatkatha #krishna #geeta #geetagyan #geetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #gitasaar #krishnastatus #krishnavani #krishnaupdesh #krishnamotivationalspeech #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 1 से 18 | Shrimad Bhagavad Geeta Saar Adhyay 1 to 18 महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद भगवद गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 696 श्लोक हैं। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 1 Shrimad Bhagawad Geeta Saar Adhyay 1 प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 2 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 2 दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 3 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 3 तीसरे अध्याय का नाम कर्मयोग है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 4 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 4 चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बाताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 5 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 5 पाँचवे अध्याय कर्मसंन्यास योग नामक में फिर वे ही युक्तियाँ और दृढ़ रूप में कहीं गई हैं। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 6 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 6 छठा अध्याय आत्मसंयम योग है जिसका विषय नाम से ही प्रकट है। जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम-यही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहते हैं। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 7 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 7 संज्ञा ज्ञानविज्ञान योग है। ये प्राचीन भारतीय दर्शन की दो परिभाषाएँ हैं। उनमें भी विज्ञान शब्द वैदिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 8 Shrimad Bhagawad Geeta Saar Adhyay 8 संज्ञा अक्षर ब्रह्मयोग है। उपनिषदों में अक्षर विद्या का विस्तार हुआ। गीता में उस अक्षरविद्या का सार कह दिया गया है-अक्षर ब्रह्म परमं, अर्थात् परब्रह्म की संज्ञा अक्षर है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 9 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 9 राजगुह्ययोग कहा गया है, अर्थात् यह अध्यात्म विद्या विद्याराज्ञी है और यह गुह्य ज्ञान सबमें श्रेष्ठ है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 10 Shrimad Bhagawad Geeta Saar Adhyay 10 श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 11 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 11 नाम विश्वरूपदर्शन योग है। इसमें अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 12 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 12 श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 13 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 13 में एक सीधा विषय क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का विचार है। यह शरीर क्षेत्र है, उसका जाननेवाला जीवात्मा क्षेत्रज्ञ है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 14 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 14 का नाम गुणत्रय विभाग योग है। यह विषय समस्त वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्वचिंतन का निचोड़ है-सत्व, रज, तम नामक तीन गुण-त्रिको की अनेक व्याख्याएँ हैं। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 15 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 15 का नाम पुरुषोत्तमयोग है। इसमें विश्व का अश्वत्थ के रूप में वर्णन किया गया है। यह अश्वत्थ रूपी संसार महान विस्तारवाला है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 16 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 16 में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना दैवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 17 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 17 की संज्ञा श्रद्धात्रय विभाग योग है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीन गुणों से ही है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है। श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 18 Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 18 की संज्ञा मोक्षसंन्यास योग है। इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। यहाँ पुन: बलपूर्वक मानव जीवन के लिए तीन गुणों का महत्व कहा गया है। गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। उपनिषदों को गौ (गाय) और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है। महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है। #kattykidz #krishna #viral #trending Follow For more #kattykidz