
High Blood Pressure का सरल निशुल्क इलाज।। Free में High BP जड़ से खत्म | High BP Control |
उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) रक्तचाप क्या है? हमें जीवित रखने के लिए रक्त हमारे शरीर के प्रत्येक भाग में धमनियों द्वारा निरन्तर पहुंचकर उसे पोषण देता रहता है। यह अत्यन्त आवश्यक कार्य हमारे हृदय द्वारा अनवरत सम्पन्न होता है। वह पम्प की तरह खुलता दबता रहता है रक्त को रक्तवाहिनी धमनियों और नलिकाओं में आगे बढ़ाता रहता है। हृदय द्वारा स्वयं को दबाकर रक्त की धमनियों में आगे बढ़ाने के कारण धमनियों की दीवार पर जो दबाव पड़ता है उसे ही रक्त दवाव या 'रक्तचाप' या ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) कहते हैं। यह रक्तचाप निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति का स्वाभाविक रूप से बढ़ सकता है जिसे कोई रोक नहीं सकता: - 1. तबीयत में जरा सा भी जोश और उमंग आने पर। 2. किसी प्रकार की जरा सी भी घबराहट या भय होने पर। 3. किसी प्रकार की अत्यधिक खुशी में भी आदमी का रक्तचाप बढ़ जाता। 4. दिलचस्प दृश्य देखने से तेज खुशबू या बदबू से सुरीली या सख्त आवाज सुनने से। 5. मानसिक तथा भावनात्मक आवेगों के कारण। 6. प्रसंग के समय। जिनको बढ़े हुए रक्तचाप की बीमारी होती है उनके शरीर में हृदय को कमजोर बना देने वाली यह क्रिया बराबर होती रहती है और यह बीमारी अकस्मात नहीं होती अपितु बहुत धीरे-धीरे भयंकर रूप ग्रहण करती है। जब तक शरीर की धमनियों और रक्त नलिकाओं की दशा स्वाभाविक रहती है, अर्थात् जब तक वे लचीली रहती है एवं उनके छिद्र पूरे खुले रहते हैं तब तक रक्त को आगे बढ़ाने के लिए हृदय को आवश्यकता से अधिक दबाव डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती और रक्त अपनी स्वाभाविक चाल से हृदय से निकलकर धमनियों और रक्त नलिकाओं द्वारा शरीर के प्रत्येक भाग में पहुंचता रहता है और उसे पोषण देता रहता है। पर जब धमनियों और रक्त नलिकाओं के छिद्र किन्ही कारणों से संकरे पड़ जाते हैं तो रक्त के समुचित संचालन के लिए हृदय को अस्वाभाविक रूप से अधिक दबाव डालकर उन पतले छिद्र वाली एवं तंग रक्तवाहिनीयों नलिकाओं में रक्त को ठेलना पड़ता है। इसके लिए हृदय को अत्यन्त कठिन श्रम करना पड़ता है जिससे वह कमजोर हो जाता है। उच्च रक्तचाप रोग अथवा दूसरे शब्दों में रक्त नलिकाओं का अपना लचीलापन खोने और उनके छिद्रों के तंग होने का कारण मात्र हमारा कृत्रिम और अप्राकृतिक जीवन एवं अनियमित आहार-विहार है। खान-पान में असंयम करने वालों के रक्ताधार विकृत और अस्वस्थ हो जाते हैं क्योंकि विकार और विष की अधिक मात्रा जिसे रक्त अनावश्यक भार के रूप में शरीर के सब अंगों से निरन्तर वहन करता है, धीरे-धीरे रक्तवाहिनीयों, धमनीयों और रक्त नलिकाओं को कड़ा कर देती है, साथ ही उनके छिद्रों में चिपक कर रक्त संचारण के मार्ग को संकुचित एवं तंग कर देती है। शरीर में मल जितनी अधिक मात्रा में एकत्र होगा उतनी ही अधिक मात्रा में वह नलिकाओं की दीवारों पर चिपकेगा, फलतः उतना ही अधिक उनका संकुचन होकर रक्त मार्ग तंग होगा तथा उसी अनुपात से यह रोग तेज और मंद होगा। उच्च रक्तचाप के कतिपय कारण इस प्रकार हो सकते हैं 1. श्वेतसार (मैदा आदि) से बनी हुई चीजें, चीनी, मसाले, तेल, खटाई, तली-भुनी चीजें, प्रोटीन, रबड़ी, मलाई, दाल, काफी, चाय तथा सिगरेट आदि का अधिक मात्रा में सेवन करना। 2. बार-बार या आवश्यकता से बहुत अधिक खाना। 3. मादक द्रव्यों धूम्रपान आदि का अधिक सेवन। 4. अपर्याप्त व्यायाम । 5. असंयम एवं तनावपूर्ण जीवनशैली। 6. चिन्ता, क्रोध, भय आदि मानसिक विकारों का बना रहना। 7. मूत्राशय के रोग, उपदेश, पुराना आंव, कब्ज तथा मस्तिष्क की शून्यता । रक्तचाप कितना है?- रक्तचाप अधिक है या कम या कि साधारण, यह जानने के लिए sphygmometer यन्त्र का सहारा लेना ठीक रहता है। स्वस्थ वयस्क व्यक्ति का रक्तचाप साधारणतः सिस्टोलिक 120 तथा डायस्टोलिक 80 मिलीमीटर पारा होता है। परीक्षण करके इस परिणाम पर पहुंचा गया है कि रक्तचाप का साधारण स्वरूप 120 से 130 मिलीमीटर पारा तक ठीक है। 130 मिलीमीटर पारा से ऊपर वाले रक्त को अस्वाभाविक और बड़ा हुआ रक्तचाप माना जाता है। 110 मिलीमीटर तक पहुंचा रक्तचाप असाधारण रूप से घटा हुआ रक्तचाप कहलाता है। जिन कारणों से रक्तचाप बढ़ने का रोग होता है उन कारणों से बचना इस रोग की प्रमुख चिकित्सा है। साथ ही स्वास्थ्य-रक्षा के साधारण नियमों के नित्य प्रतिपालन करने की आदत डालनी चाहिए। भोजन के समय पानी न पीना, उसके दो घंटे बाद खूब पानी पीना, भोजन चवा चवाकर करना, भोजन के बाद पेशाब करना तथा कम से कम 50 कदम टहलना तत्पश्चात् थोड़ा आराम करना, सुबह-शाम शक्ति अनुसार हवाखोरी टहलना, उषापान करना, नींबू का रस मिला जल दिन में प्रचुर मात्रा में पीना, शाम का खाना सूर्यास्त लिए पहले खा लेना, भूख न होने पर न खाना, सूर्योदय के पहले ही शैय्या त्याग देना, दिन में न सोना, सोते समय मुंह को न ढकना, शान्त और प्रसन्नचित्त रहना, अधिक न खाना, कब्ज न होने देना, सप्ताह में एक-दो दिन जल पर रहकर उपवास करना तथा गहरी नींद लेना आदि स्वास्थ्य-रक्षा के साधारण नियम हैं। यौगिक चिकित्सा: - 1. शुद्धि क्रिया नेति । 2. गर्दन एवं वक्षभाग की यौगिक क्रियाएँ। 3. आसन, पवनमुक्तासन, वज्रासन एवं शशांकासन 4. प्राणायाम नाड़ीशोधन एवं उज्जाई प्राणायाम । 5. योगनिद्रा दिन में दो बार (30-30 मिनट)। 6. प्रेक्षाध्यान दीर्घश्वास प्रेक्षा एवं अभय की अनुप्रेक्षा । 7. तेल, घी, मांस, मिर्च-मसालों आदि के वर्जन के साथ हल्का सुपाच्य भोजन (न्यूनतम नमक के साथ) निश्चित समय पर लिया जाए। अरोग्यवान भव: ।। #anamayamyog #sudhirgautam #highbloodpressure #HighBP #BloodPressure #HealthTips #HealthyLifestyle #Hypertension #WellnessJourney #FitnessGoals #NutritionalFacts #HeartHealth #BPManagement #HealthyLiving #LifestyleChanges #Cardiology #HealthAwareness #MedicalAdvice #Wellness #Prevention_is_Better_than_Cure #FitnessTips #healthyhabits