Shiva ko nil kantha kyu kahete he  #mahabharat #ramayana #bajarangbali#manuman

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#महाभारत अभिमन्यु का हुआ वध और मरते हुए अभिमन्यु के कान में कर्ण ने क्या कहा था ? | Suryaputra Karn | Episode No. 262 | #महाभारत Episode 262 ------------------- The strategy of Duryodhan gets successful by trapping Abhimanyu in his deceptive trap. Duryodhan wants to kill Abhimanyu in the war of Mahabharat to take back his revenge. He wants to kill him mercilessly by giving him unbearable pain till the end of his last breathe! Want to know more? Then stay tuned in and find out here! दुर्योधन की रणनीति अभिमन्यु को अपने भ्रामक जाल में फंसाकर सफल हो जाती है। दुर्योधन अपना बदला वापस लेने के लिए महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु को मारना चाहता है। वह उसे अंतिम सांस तक असहनीय पीड़ा देकर बेरहमी से मारना चाहता है! और अधिक जानने की इच्छा है? फिर बने रहें और यहां जानें! दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ! बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि !! बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ! बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार !! चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर.. जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥ रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥1॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी ॥2॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा ॥3॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै॥4॥ संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥5॥ विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर ॥6॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया ॥7॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥8॥ भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे ॥9॥ लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥10॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥11॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥12॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा ॥13॥ जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते ॥14॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥15॥ तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥16॥ जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥17॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥18॥ दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥19॥ राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥20॥ सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना ॥21॥ आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै ॥22॥ भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै ॥23॥ नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥24॥ संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥25॥ सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा ॥26॥ और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै ॥27॥ चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा ॥28॥ साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे ॥29॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता ॥30॥ राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा ॥31॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै ॥32॥ o अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई ॥33॥ और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥34॥ संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥35॥ जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥36॥ जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई ॥37॥ जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥38॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ॥39॥ दोहा रावण बहुत ही शक्तिशाली राक्षस था उसने अपनी शक्तियों के बल और तप से महादेव और ब्रह्मा जी को भी प्रसन्न कर वरदान पाए हुए थे। रावण की बहन शूर्पणखा लक्ष्मण क्यू हाथों अपनी नाक कटवा कर अपमानित हो रावण के पास आती है और अपने अपमान का बदला लेने के लिए कहती है। रावण को क्रोध आ जाता है। विभीषण रावण को समझता है की उसे शूर्पणखा की बातों में नहीं आना चाहिए और असलियत का पता लगाना चाहिए। रावण उसकी एक नहीं सुनता और सीता का हरण करने की ठान लेता है। रावण अपने मामा मारीच के पास जाता है और सीता जी का हरण करने की साज़िश रचता है।मारीच सोने का मृग बनकर सीता जी को आकर्षित कर लेता है, सीता जी श्री राम को उस मृग को लने के लिए भेज देती हैं तभी श्री राम उस मायावी मृग की चल समझ जाते हैं और उस पर बाण चला देते हैं मारीच को बाण लगता है तो वो श्री राम की आवाज़ में सीता और लक्ष्मण को आवाज़ देते हैं। माता सीता श्री राम की आवाज़ सुन लक्ष्मण को भेज उनकी मदद के लिए भेज देती हैं। सीता जी को अकेले देख कर रावण ब्राह्मण का रूप धर सीता जी के पास जाता है और सीता जी का धोखे से हरण कर ले जाता है। सीता जी की पुकार सुनकर जटायु उनकी मदद को आता है और रावण से युद्ध करता हैं लेकिन रावण उनके पंख काट देते हैं जिसके कारण जटायु आसमान से नीचे गिर जाते हैं और रावण सीता जी को अपने साथ उठा ले जाता है। रामायण के सभी एपिसोड और भजन देखने के लिए Subscribe करें तिलक YouTube चैनल को।